मंगलवार, 18 अगस्त 2015

बोकड़िया गौत्र की उत्पत्ति का एक मात्र कारण : जीवदया

बोकड़िया गौत्र के उद्भव से "जीवदया" का सीधा कारण………

क्षत्रिय जाति से जैन-दर्शन अंगीकार करने का एक मात्र कारण जीव-अनुकम्पा रहा। न कोई चमत्कार न किसी विपत्ति के निवारण का प्रयोजन।प्रथम शिकार स्वरुप अनावश्यक हिंसा से निवृति पाने के लिए एवं  दूसरी बार लाखों जीवों की हत्या की सम्भावना से अनुकम्पा काज। कोई अतिश्योक्ति नहीं, कोई मुर्दा के जीवित होने आदि के चमत्कार का प्रपंच नहीं………

1- जैन प्रतिबोध :-
शिकार करते हुए चौहान वंशीय राजा सामंतसिंह को आचार्य जयदेवसूरि ने जीवहिंसा से निवृति का उपदेश दिया। आचार्य ने पापकारी सात व्यसनो के बारे में राजा को विस्तार से बताया। शिकार उन व्यसनों में से एक है। जीवों के प्रति अनुकम्पा से द्रवित होकर राजा ने जैन धर्म अपनाया। सात व्यसनों के  त्याग से व्रतधारी श्रावकधर्म में प्रवेश हुआ।

2 - बोकड़िया गौत्र स्थापना :-
वध के लिए लाए गए लाखों बकरों को श्री देवधर जी ने अभयदान दिलवाया। इसी घटना के परिणाम स्वरूप बोकड़िया गौत्र की स्थापना हुई।

अभयदान श्रेष्ठ दान
अहिंसा परमो धर्मः
जीवदया ही धर्म है।

- हंसराज बोकड़िया

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