चौहान राजवंश में सामंतसिंह का होना निर्विवाद है। चौहानो के वंशानुक्रम में, बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सामंतसिंह का नाम प्रथम है। पृथ्वीराज विजय में तीसरे स्थान, प्रबंधकोष के अनुसार दूसरे, हमीर महाकाव्य के अनुसार सातवे, सुर्जन चरित्र में पांचवे स्थान पर एवं राजपूताना गजेटियर में तीसरी पीढी के स्थान पर है।
बिजोलिया लेख के अनुसार सपादलक्ष के चाहमानों का आदिपुरुष वासुदेव था। वह सांभर झील का प्रवर्तक था। इसका समय 551 ई (संवत् 608) के लगभग अनुमानित किया जाता है इसी के वंश में सामन्त शासक हुआ।
चौहानों का राज प्रदेश क्या था एक मत नहीं है वासुदेव का मुख्य प्रदेश सांभर था तो उन्हें जांगलेश भी कहा जाता है यह प्रदेश बिकानेर सहीत उतरी राजस्थान था, रण्थम्बोर को भी उनका मुख्य राजथान माना जाता है तो सिकर शेखावटी को भी, अजमेर तो उनका मुख्यालय रहा ही है किन्तु पूढाला, आबू, सिरोही पर भी उनका अधिपत्य रहा है। माना जाता है उनका शासन शेखावटी से सिन्ध पर्यन्त था। ऐसे में कभी रामसीन भी उनका राजथान रहा हो तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
हमारी पहली वंशावली में "श्री गण्र्शाय नमः॥ बोकड़िया गौत्र बलदोटा गौत्रे, पूर्ववंश चवांणवंशी राजपूत महाराज श्री पृथ्वीपाल रे पाट वासदेव, वासदेव रे पाट सोमदेव, सोमदेव रे पाट सामंतसिंह………"
दूसरी वंशावली में प्रतिबोधक के रूप में सोमदेव या सोमदेवधन नाम आता है।
सोमदेव या सामन्तसिंह के बाद दो पुत्रों के नाम है यथा श्रीपाल एवं चाहड़देव्। दोनो वंशावलियों में यह दोनो नाम समान है।
सम्भव है सोमदेव व सामंतसिंह एक ही व्यक्ति के नाम हो, भिन्नता के कारण अलग अलग समझ लिया गया हो। बिजोलिया लेख में सामन्तसिंह के बाद नृप व जयराज के नाम आते है। सम्भव है सामन्तसिंह के 4 से अधिक पुत्र रहे हो, शासन की धूरी नृप (पूढ़ाला) एवं जयराज ने सम्हाली हो, श्रीपाल एवं चाहड़देव पूरी तरह जैनधर्मानुरागी बने हो, राजवंशों के वंशावलीकार प्रायः जैन बन जाने वाले वंशजों को गौण कर देते है उसका उल्लेख नहीं करते।
इसलिए यह अधिक सम्भव है कि हमारे गौत्र के मूल पुरुष यही चौहान श्रेष्ठ सामन्तसिंह है। इसी कालान्तर में राजधानी के रूप में रामसीन का पतन हुआ हो, नृप ने पूढ़ाला को राजथान बनाया हो, इधर श्रीपाल व चाहड़देव के वंशजो ने बलदोट बसाया हो।
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