शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

बोकड़िया – बलदोटा

बोकड़िया – बलदोटा
॥श्री गणेशाय नमः॥
ॐ बोकड़िया गौत्र, बलदोटा गौत्रे, पूर्ववंशे चवांणवंशी राजपूत, महाराज श्री पृथ्वीपाल जी रे पाट वासदेव, वासदेव रे पाट सोमदेव, सोमदेव रे पाट सामंतसिंह, रामसीण वास्तव्य॥

संवत 707 वरषे, रामसीण नगरे, राजा सामंतसिंह राज करे छे। तण रे पुत्र नहीं, अनेक प्रकार का दान उपाय कीधा, पुत्र री प्राप्ति हुई नहीं। एक वार राजा हेड़े हालिया शिकार खेले छे, घणा जीवां ने मारिया तरे आगा हालिया। आगे देखे तो धरमाचारज गुरू तपस्या करे छे। राजा गुरू ने देखने पगे लागो। स्तुति किदी, “अहो! महाराज म्हारे माथे हाथ धर दो!” तरे गुरू बोळ्या, "हे राजा! जैन धर्म धारण कर, सात व्यसन रा त्याग कर!! सात व्यसन किस्या?……"
"द्युत च मांस च सुरा च वेश्या, पापार्धिचौर्ये पर-दार सेवा।
एतानि सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयन्ति॥"
जद राजा गुरां रा वचन थी सात व्यसन रो त्याग किधो। सिवधर्म छोड्यो, जैन धर्म री साधना आराधिता। रात्री भोजन निवार्यो, मद-मांस छोड्यो, घोडा हाथी ने छाण्यो पाणी पावण लागा। राजा श्रावग रो धरम आदरियो, भट्टारक सिरि वर्धमानसूरि प्रतिबोध दंता। पश्चात रामसीण ग्राम मध्ये श्री भगवंत रो देवरो करायो, संवत 709 वरसे। तीण अवसरे सोनेरी सूत्र वेरायो, चेला चार लेने वेराया।
ओसवाल, गौत्रजा 'आछोपला' थापी।
दीपमाला पूरसे, आखातीज दसरावे नव-नैवध कीजै। पूत्र जनमिये सांकली मासा सवा चढाविजै। चवदस अष्टमी दने तेह कीजै, अरटियो नहीं फरे। वाजणी सांकली न पेरणी।
खेतलो, 'मंडोवर रो क्षेत्रपाल ' पूजणो।
तेल सेर 5, कणेर फूल। लापसी करणी, पुत्र जनमिया कीजै, विवाह में अधकर कीजै। सोनाणा रो खेतलो पूजीजै, वड़ा बेटा रो नाक बिंदिजै, जीवतो रहे।
राजा सामंतसिंह रे पाट, श्रीपाल के जगलुगढ प्रसाद करायो। रूपिया लख 92 खर्च्या। सत्रुकार दीधो, वरस दोय रे सकाने। सोनैया रा नेमत दीधा। प्रतिष्ठा श्री गुरू देवानन्दसूरि।
श्रीपाल रे पुत्र पीपल, पुत्र रावण, पहीड़। रावण रे पुत्र अमधर रे पुत्र पदमसिंह पुत्र विक्रमसिंह पुत्र उदैसिंह पुत्र अमेदसिंह।
रामसेणनगर रे उपर पादशाह 12 आया। बारेई पादशाहो ने जीत्या, तद पादशा वीरद दीधो, “बड़ा बलवान छे” तग श्री बलदोटा गौत्रे  सं 1011 वेशाख सुदी 15 दिने बलदोट नगर वसायो।
पहाड़ जी, बोकड़िया-बलदोटा गौत्रे :-
पहाड़ जी के मंडोवर मध्ये कुंथनाथ प्रसाद कराया। बावन जिनालो देवरो, सं 1095 वरषे, वैसाख सुदी 15 दिने, सोमवार स्वाते नक्षत्रे, प्रतिष्ठा भट्टारक श्री दीवानन्दसूरि जी।
श्रेष्ठ पहाड़ पुत्र देवधर ने बोकड़िया विरुद दीधो :-
पादशाह चढ़ने आयो, मुळक में तुरकाणी कीधी। जद देवधर जी खेतलाजी सुं अरज कीधी। माताजी रा देवरा खड़क कीधा। पादशाह रो नाम अमलदीन सुलतान। जद देवमाया हुई, पादशाह हारे। पुत्र शहजादा री गाबड़ अपूठ फरे गई। जद पादशाह जाण्यो, ए देव साचो छे, देवरो पाडो मती। फेर कह्यो, जो साहेजादा री गाबड़ सुधी करे तीण ने मांगे सो देउं। जदी हकेकत सुणी राजाकरवाणी करे दीधी। अनेक प्रकार रा जंत्र मंत्र कीधा, पण साता हुई नहीं। जोगणी सळियो छे। चोरासी जीवजूण भरिया छे, सवा लाख बोकड़ा, सवा लाख कूकड़ा, फेरियां बे भैस चढ़ावसी।
आ वात देवधर जी जाण्यो, ए जीव सरव परा मरसी। पादशाह सुं मालूम कराई। जद पातशाह पालखी मेली। देवधरजी गया, पातशाह सुं राम-राम कीधो, पातशाह उभो वे ने ताज़ीम दीधी ने कह्यो, “आप मांगोगा सो देउं” जद देवधरजी पातशाह रो वचन मांग्यो, तद पातशाह वचन दीधो। जद कंवर ने साजो कीधो। पातशाह ने कहयो, “थारो वचन संभालो”। पातशाह कह्यो, “सो मांग”। तिण समै फौज मेली, बंधीवान छोड़ाया। सरव जीव बोकड़ा जणा रे कडी लगाई, कूकड़ा ने परा छोड्या। वळी पादशाह लाख पसाव दीधो। तीण समै, बोकड़िया विरूद पाया। पातशाह टूटा थका भगवंत रा देवरा कराया। सोना-चांदी रा बंब भराया। आ संवत 1123 रा वरषे, प्रतिपाल राखी।
वळी कुंथनाथ भगवान तुस्टमान हुआ। श्रेष्ठ देवधर जी पुत्र अगड़, मंडोवर नगरे सदाव्रत दीधी। वरसे 25 रा काने, रसोई दीधी, सोना आदि।
पुत्र धणदेव, पुत्र नरसिंग, पुत्र वरसिंग, पुत्र नापा। वरसिंग पुत्र गोसल, पुत्र असधर, पुत्र जसदेव, पुत्र चउदेव, बोड़ा 3 आसु। जसदेव जेहलू, समधर,गजधर, वजैसिंग। जेहलू पुत्र राजू, चाहल, पुत्र लाला पुत्र लींबा, घीघा, कीका, उसतकुमार्। लींबा रो पुत्र कुरसी, लखमा, पदमसिंग, पुण्यपाल, वस्ता, पुत्र राणा, हेमा। 
रणसिंह हुंकार दीधी।
श्री इ्न्द्रमाल :

आबू रो संग काड्यो, तिहां बावन संग में आप रो संग सरे। आपरो संग त्यां थी शत्रुंजय गया, तीहां मोहर 12000 खरची, इन्द्रमाल पहेरी। आबूजी में मोहर 13000 खरची। गीरनार जी में संगमाल पहेरी, तिहां मोहर 11000 लगाई। रखबदेव जी मोहर 8000 खरची, संघमाल पेहरी। आबू विमल गढ़ जस लियो। गढ़ गिरनार बावन संग में जस लियो। संघवी पदमी पाई।
भट्टारक श्री देवानन्दसूरि जी, मोतियां री माल, सोना रा सूत्र, चेला 8, पालखी, चमर, छत्र दीधा। दुशाला ओढ़ाया, मनसा भोजन दीधा, दवा आशीष लीधी।
रणजीतसिंह रे भार्या कुंतादे : बारे व्रत धारिया, श्रावग ना व्रत पछखाण लीदा। वीस स्थानक तप आराधिया। ते पछे, छ-एक बिंब भराया। अग्यारे सूत्र सोना रा वेराया। साधां ने अनेक प्रकार का धरम ध्यान कीदा। महाजन रो खटकर्म साध्यो, उजमणो कीधो। गांव मंडोवर मध्ये, दाम हजार 80 खरच्या। हेमाजी ने कालो खेतलो मंडोवर तुष्टमान हुआ। 
॥इति॥

(प्राप्त वंशावली की प्रतिलिपि का  प्रथम पृष्ठ)

मूल वंशावली : कुलगुरु श्री धनरूप जी, ‘वड़गच्छ पोशाल’, ‘जोजावर’। संवत् 1924 असाढ वदी 3, दिखण देश में जुने परगने ‘बोरी-चिचोरी’

संपादन एवं  प्रस्तुतिकरण  -  हंसराज बोकड़िया

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