गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

घटना निर्णय

1 रामसीण पर आक्रमण एवं बलदोटा उपाधि
2 बलदोट नगर स्थापना, बरलूट सं १०१०
3 मंडोर पर आक्रमण
4 मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं
5 संघयात्राओं के वर्णन

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

बोकड़िया गौत्र का प्रथम अधिवेशन


"अखिल भारतीय प्रथम बोकड़िया महाअधिवेशन"
वरकाणा अधिवेशन 2016
18 दिसंबर 2016 को कुलदेवी श्री आशापुरा माताजी के क्षेत्र में श्री वरकाणा पार्श्वनाथ तीर्थ, वरकाणा के धर्मस्थान में पूर्ण उमंग एवं उत्साह के साथ आयोजित हुआ। 21 सदस्यी आयोजन समिति के कर्मठ और क्रियाशील नेतृत्व में अखिल भारतीय प्रथम बोकड़िया महाअधिवेशन पूर्ण सफलता के साथ संपन्न हुआ। राष्ट्रीय संयोजक श्री हंसराज बोकड़िया (सांचौर) ने जयघोष के साथ अधिवेशन सभा के *प्रथम सत्र* का मंगलमय प्रारम्भ किया। श्री मनीष बोकाड़िया (बदनावर) ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। 11 नवकार के ध्यान से शुभारंभ अधिवेशन में सर्वप्रथम पधारे हुए सभी सगौत्रीय बंधुओं का भावभीना स्वागत किया गया। श्री सुशीलकुमार बोकड़िया (अमरावती) ने गत *बरोडा प्रतिनिधि सभा* की कारवाही (मिनिट्स) का पठन किया। राष्ट्रीय संयोजक श्री हंसराज बोकड़िया ने सभा संचालन करते हुए गौत्रीय संगठन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। "संघ गुणायरं वंदे" गुणों का आगार संघ वंदन तुल्य होता है। इस सूत्र के साथ संगठन के उद्देश्यों को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया। बोकड़िया गौत्र के बारे में जानकारी देते हुए संचालक महोदय ने बोकड़िया गोत्र के इतिहास संकलन, शोध, संशोधन एवं संपादन के कार्य को संक्षेप में प्रस्तुत किया। साथ ही बोकड़िया गोत्र के अब तक शोधित संकलित संपादित इतिहास को सभा के सम्मुख सारसंक्षेप में पढ़कर सुनाया। तद्पश्चात 'मिलन-परिचय' का प्रारम्भ किया गया। सभी बंधुओं ने सभा के मंच से अपना अपना परिचय प्रस्तुत किया। इसप्रकार सभी के परिचय का आदान प्रदान सम्पन्न हुआ। सभा के पश्च्यात श्री आशापुरा माताजी, नाडोल दर्शनार्थ जाने की योजना थी अतः सभी सभासदों को 11 बजे माताजी दर्शनार्थ जाने की सविनय सूचना दी गई। सभा को अगले सत्र के लिए दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित किया गया। *नाडोल दर्शन* दोपहर 11.00 बजे श्री आशापुरा माताजी दर्शन महाभोग का कार्यक्रम था। पूर्व संध्या में ही समस्त बोकड़िया परिवार की तरफ से माताजी की पडाई स्वरूप, पूरा वेश एवं श्रृंगार अर्पण किया गया था ताकि दर्शन के समय माताजी उसी वेश में दर्शन दे। सभा के पश्चात वाहनों द्वारा सभी बोकड़िया बंधु नाडोल माताजी पहुँचे। वहां समस्त बोकड़िया परिवार द्वारा सामूहिक ५.२५ किलो लापसी का भोग लगाया गया। सभी बोकड़िया भक्तों ने दर्शन सेवा पूजा भक्ति की एवं कुल कुटुम्ब के लिए मंगल प्रार्थना की। दर्शन भक्ति के आनंद से ओतप्रोत बंधुओं ने माताजी मंदिर में यात्रा-अर्पण किया एवं पुनः वरकाणा के लिए लौट आए। *द्वितीय सत्र......* भोजन पश्चात.....दोपहर 2.00 बजे से...... महाअधिवेशन का दूसरा और मुख्य सत्र दोपहर 2.15 मिनिट पर प्रारम्भ करने की घोषणा की गई!! सर्वप्रथम आयोजन समिति के सभी सम्माननीय सदस्यों को को मंच पर आसन के लिए आमंत्रित किया गया। पुनः जयघोष एवं 11 नवकार के ध्यान से द्वितीय सत्र का शुभारंभ किया। संयोजक श्री हंसराज बोकड़िया ने इस संगठन की भूमिका की एवं अखिलभारतीय स्तर पर बोकाड़िया परिवारों के संयोजन के दूरगामी उद्देश्यों को प्रकट करते हुए कहा कि हम करीबन 1300 वर्षों के बिछड़े मिल रहे है। ऐसे संघ का प्रधान लक्ष्य यह है कि कही कोई छोटे से गाँव में इक्का दुक्का परिवार रहता हो वह भी गर्व से कह सके कि बड़ा विशाल एवं विराट मेरा परिवार है। विशाल संगठन में प्रत्येक परिवार स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। संगठन के माध्यम से हम एक दूसरे के सहायक सहयोगी बन सकते है। भूमिका के पश्चयात संचालक महोदय हंसराज जी ने आगामी सम्मेलन हेतू विचारणा के लिए चर्चा सूत्र की शरुआत की। इस चर्चा में अनेक मुद्दे विचारणीय थे.. सम्मेलनों की अवधि क्या हो, कहाँ बुलाया जाय, कैसे...आदि, केवल पुरुष वर्ग, सजोड़े अथवा सपरिवार। कब बुलाया जाय व अर्थप्रबंध कैसे हो। इस चर्चा में सभी बंधुओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कई सुन्दर सुझाव एवं महत्वपूर्ण प्रस्ताव आए। सार्थक चर्चा के अंत में सभी की एक राय बनी जिसे संचालक हंसराज जी ने सभा समक्ष स्पष्ट किया। 1. सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित हो!! 2. अगला सम्मलेन सजोड़े (couple)हो!! 3. अगले सम्मेलन में तीर्थ एवं आमोद प्रमोद दोनों पर विचार हो!! 4. सम्मेलन 2 दिवस एक रात्री का रहे!! 5. व्यय प्रस्तावों एवं अर्थ प्रबंध पर समिति में विचारणा हो। 6. स्थान समय व योजना पर समिति निर्णय करेगी!! एजेंडा में अगला बिंदु आयोजन समिति का पुनर्गठन था। इस बिंदु पर भी सार्थक चर्चा हुई। सदन से समिति के आमूल चूल परिवर्तन का आदेश नहीं हुआ। सभी की एक राय थी कि वर्त्तमान 21 सदस्यों की समिति कार्यरत रहे। जब आग्रह किया गया कि कई नए क्षेत्र ग्राम नगर को समिति में प्रतिनिधित्व होना चाहिए। ऐसे में सदन ने समिति विस्तार की अनुशंसा की एवं 10 नए सदस्यों को लेकर 31 की विस्तारित कमिटी का निर्णय हुआ। सभा से ही 10 नामों को आमंत्रित कर 31 की कमिटी का निर्णय हुआ। अगला एजेंडा डायरेक्ट्री संबंधी विमर्श था। बिना संपर्कों के सभी तक पहुँचना आसान नहीं, डायरेक्ट्री की त्वरित आवश्यकता सभी ने महसूस की।उस पर उचित चर्चा के बाद फॉर्म कलेक्शन में तेजी लाने का निर्णय हुआ। फॉर्म संकलन की अंतिम तिथि 30 जून निर्धारित की गई। इस कार्य में सभी से सहयोग की अपील की गई। अगला मुद्दा क्षेत्र प्रतिनिधि दल का विस्तार था। किंतु सभा में नए क्षेत्र वासी की अनुपस्थिति के परिणाम स्वरूप कोई नए नाम नहीं आए। समिति संपर्क अनुसार नए प्रतिनिधियों को जोड़ेगी। अगला बिंदु आय व्यय के ब्यौरे का प्रस्तुतीकरण था। श्री दिनेश जी बोकड़िया (मंडार) ने आय व्यय का ब्यौरा पेश किया। अगला एजेंडा बिंदु संगठन की विजनरी था। संयोजक श्री हंसराज जी ने संक्षेप में भविष्य में संस्था के लिए करने योग्य योजनाओं का उल्लेख किया। आठवा बिंदु था अन्य विषय संचालक की अनुमति से..... अन्य विषय में श्री सुशीलजी अमरावती की संकल्पना से जारी अधिवेशन की स्मृति स्वरूप जारी पोस्टल कवर का विमोचन किया गया। विमोचन पधारे हुए बंधुओं में बुजर्ग सदस्यों के कर कमलों से सम्पन्न हुआ एवं साथ ही शब्द सुमन द्वारा बुजर्गों का सम्मान किया गया। एक अन्य लिखित प्रस्ताव उदयपुर की महिला मंडल से प्राप्त हुआ जिसमें बोकड़िया समाज का अखिलभारतीय स्तर पर महिला मंडल रचने का प्रस्ताव आया। एक प्रस्ताव श्री पुखराज जी बोकड़िया ने प्रस्तुत किया था हमें सगौत्रीय बंधू सहायता की योजना बनानी चाहिए इस प्रस्ताव को अन्य विषय में सम्मलित किया गया। एक अन्य प्रस्ताव बलदोटा गोत्र तक संगठन को विस्तार देने का आया। इन सभी प्रस्तावों पर विचार करने का समिति ने पूर्ण विश्वास दिलाया। संयोजक श्री हंसराज जी ने सभी बंधुओं, सहायकों सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। पूरी परियोजना को उसके लक्ष्य तक पहूँचाने में सहयोगी समिति सदस्य एवं साथ सहकार के लिए सभी के प्रति व्यक्तिगत आभार प्रस्तुत किया।

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

ओसवाल इतिहास ग्रंथों की सूची

ओसवाल जाति के इतिहास ग्रंथों में


1- "जैन सम्प्रदाय शिक्षा" (संवत 1967) ले-यति श्रीपालचन्द्र
2- "महाजन वंश मुक्तावली" (संवत 1967) ले- यति रामलाल
3- "श्री जैन गोत्र संग्रह" ( संवत 1980) ले- पं हीरालाल हंसराज
4- "औसवाल जाति का इतिहास" ( संवत 1982) श्री सुखसम्पतराय भंड़ारी
5- "श्री जैन जाति महोदय" ( संवत 1986) ले- मुनि ज्ञानसुन्दर
6- "भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास" (संवत 2000) ले- मुनि  ज्ञानसुन्दर 
7- "ओसवाल वंश अनुसंधान के आलोक में" (संवत 2039) ले- सोहनराज भंसाली
8- "इतिहास की अमरबेल ओसवाल (संवत 2045) ले- मांगीलाल भूतोड़िया
9- "ओसवंशः उद्भव और विकास (सन् 2008) ले- डॉ महावीरमल लोढ़ा
10- "ओसवंश का इतिहास" (सन् 2008) ले- डॉ महावीरमल लोढ़ा

शनिवार, 18 नवंबर 2017

बोकड़िया गच्छ का अस्तित्व

प्राचीन इतिहास साहित्य के अध्ययन के दौरान हमें एक गौरवशाली तथ्य मिला। बोकड़िया समुदाय के लिए, कभी स्वतंत्र "बोकड़ियागच्छ" विद्यमान था। ऐसा अमूमन किसी गोत्र का गच्छ नहीं देखा गया। शिलालेख एवं प्रतिमा लेख के ग्रंथों का अध्ययन इस आशय से हो रहा था कि शिलालेखों के साक्ष्य से बोकड़िया गोत्र का इतिहास, गोत्र के विशिष्ट पुरुषों के बारे में जानकारी हासिल हो। उसी उपक्रम में बोकड़िया गच्छ का अस्तित्व सामने आया। उल्लेख देखने से हमें साधुओं के नाम, उनका काल एवं उत्तरोत्तर गच्छ के नाम परिवर्तन की भी जानकारी प्राप्त होती है। उक्त शिलालेखों को क्रमबद्ध करने से यह साक्ष्य भी मिलता है कि 'बोकड़िया गच्छ', प्राचीन वड़गच्छ (वृहदगच्छ) की शाखा था। सम्भवतः यह चंद्रकुल से वनवासीगच्छ एवं उसके पश्चात वड़गच्छ नाम से विख्यात हुआ वड़गच्छ से रामसैन्य गच्छ एवं रामसैन्यगच्छ से बोकड़िया गच्छ शाखा निकली। वड़गच्छ ही तपागच्छ आदि का पूर्व गच्छ था।
शिलालेख :
सं 1458 श्री धनदेवसूरि पट्टे धर्मदेवसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1496 श्री भट्टा. धर्मतिलकसूरि 'बोकड़िया गच्छे'
सं 1503 श्री भट्टा. धर्मचंद्रसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1511 श्री भट्टा. मलयचंद्रसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1519 श्री धर्मचन्द्रसूरि पट्टे मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1525 श्री धर्मचन्द्रसूरि पट्टे मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1529 श्री मलयचंद्रसूरि 'गच्छे बोकड़िया'
सं 1529 श्री मलयचंद्रसूरि 'बोकड़िया'
सं 1530 श्री मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1549 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि
सं 1553 श्री भट्टा. मुनिचन्द्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1559 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1562 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि  'बोकड़िया गच्छे'
सं 1587 श्री मलयहंससूरि 'वृहद बोकड़िया गच्छे'
सं 1617 श्री देवानंदसूरि 'बोकड़िया गच्छे'
इस प्रकार वृहदगच्छ (वडगच्छ) की शाखा रामसेनियागच्छ और रामसेनिया गच्छ से बोकड़ियागच्छ शाखा निकली। रामसीन से तो हमारा संबंध है ही साथ ही दो शिलालेख में तो "वृहदगच्छे बोकड़िया वंट" स्पष्ट उल्लेख है। अर्थात बोकड़िया गच्छ, वडगच्छ की शाखा है। यह स्पष्ट संकेत है कि हमारा मूल गच्छ, वड़गच्छ (वृहदगच्छ) है।
'प्राचीन लेख संग्रह' ले. विद्याविजय जी (प्र. सं. १९२९) लेखांक : ४०२
'जैन प्रतिमा लेख संग्रह' ले. बुद्धिसागर, लेखांक : ४३२

'प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : ३१५
नागोर बड़ा मन्दिर

'प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : ७१४
जयपुर पंचायती मन्दिर

'प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : ७१६
जयपुर पंचायती मन्दिर

'प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : ७२५
पनवाड़ महावीर मन्दिर

'जैन लेख संग्रह' ले. पूर्णचन्द्र नाहर, लेखांक : १९१५

जैन लेख संग्रह' ले. पूर्णचन्द्र नाहर, लेखांक : १२४६
प्राचीन चौरासी गच्छ की सूची में 13 वे स्थान पर "बोकड़िया गच्छ"



एक अन्य प्राचीन 84गच्छ सूची में 20 वे स्थान पर बोकड़िया गच्छ।

जैन लेख संग्रह' ले. पूर्णचन्द्र नाहर, लेखांक : ११६९
प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : १८२
नागौर बड़ा मन्दिर



मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म नामक शोध प्रबंध में उल्लेख

जैन लेख संग्रह' ले. पूर्णचन्द्र नाहर, लेखांक : १४१४

'प्रतिष्ठा लेख संग्रह' ले. उपाध्याय विनयसागर लेखांक : ९१६
जयपुर पंचायती मन्दिर

बोकड़िया गोत्र के परिवारों की संयोजन यात्रा

"बोकड़िया गोत्र के कुटुम्बों की संयोजन यात्रा"
                         - हंसराज बोकड़िया

ओसवाल जाति की उत्पत्ति के विषय में पढ़ते हुए, सर्वप्रथम सन 1993 में मेरे हृदय में जिज्ञासा हुई कि मुझे बोकड़िया गोत्र की उत्पत्ति के विषय में जानना चाहिए, हमारी पीढ़ियों और पूर्वजों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए ।
हमारे कस्बे सांचौर के बोकड़िया परिवारों की पीढ़ियों को कड़ीबद्ध करने के लिए मुझे सहयोग दिया मेरे भतीज सुमेरमल बोकड़िया एवं भतीज मफतलाल बोकड़िया ने। इतिहास एवं क्रमबद्ध पीढियां जानने के लिए उस समय के सभी बुजुर्गों से घंटों बैठकें करनी पड़ी, किन्तु इतिहास पर कोई अधिक जानकारी नहीं मिली। ऐसे में प्रेरणास्रोत बनकर आगे आए, मेरे भ्राता हस्तीमल जी घमड़ीराम जी बोकड़िया, उनके पास जानकारियों का भंडार था। उन्होंने मुझे सांचौर की पीढ़ियों को क्रमबद्ध करने में बहुत सहायता दी। सांचौर के दो समूह के एक ही पूर्वज तक की विस्मृत कड़ियों को जोड़ने के लिए उत्साहित किया। कई चली आ रही धारणाओं पर विस्तृत विवेचन किया, एवं उन मान्यताओं की समीक्षा में सहयोग दिया। साथ ही उन्होंने इस गोत्र अनुसंधान को राष्ट्रीय स्तर के संयोजन-सम्मेलन तक ले जाने की प्रेरणा दी। निश्चित ही उन्हें पूर्वाभास था कि इस कार्य में रुचि अरुचि के आरोह अवरोह आएंगे अतः उन्होंने मेरे मनोबल को दृढ़ करने के लिए संकल्प दिया कि "इस कार्य को हाथ में लिया है तो किसी भी हाल में अधूरा मत छोड़ना" मैंने भ्राता को विश्वास दिलाया कि देर सबेर ही सही, मैं इस महत्वपूर्ण कार्य को अवश्य उसके चरम लक्ष्य तक पहूंचाऊंगा।
सांचौर के दोनो समूह की पीढ़ी मिलाने के क्रम में उस समय हमारे बुजर्ग श्री हरखचन्द जी हकमाजी बोकड़िया ने स्मृति के आधार पर बताया कि "जैमल जोधा" का एक घर ही गढ़ सुरावा से संवत 1700 की सदी में सांचौर आकर बसा था। हम दोनों समूह उस एक परिवार के वंशज है। लेकिन वे भी वंश क्रम कड़ियाँ नहीं जोड़ पाए। एक और बुजुर्ग श्री हस्तीमल जी भभूत जी बोकड़िया हमारी जानकारी में इतनी ही वृद्धि कर पाए कि हमारा "नख चौहान" है।
इतिहास के बारे में सभी बुजुर्गों के मुख एक पंक्ति की दंतकथा भर थी कि "बकरों को छुड़वाने से बोकड़िया गौत्र की स्थापना हुई।' किन्तु किसी को भी श्रृंखलाबद्ध इतिहास ज्ञात नहीं था।
गौत्रीय परिवारों के संयोजन संकलन और संपर्क के लिए प्राथमिक तौर पर हमारे पास आधारभूत ऐतिहासिक जानकारी का होना नितांत जरूरी था। क्योंकि उसी मूल के आधार पर, आज के बिखरे परिवारों में भातृत्व भाव जगाया जा सकता है। कुल गौरव के आख्यान ही एकता के प्रेरणास्रोत बनते है। ऐतिहासिक गौरव के बल पर उन्हें एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। किन्तु कड़ीबद्ध इतिहास के अभाव में परिवारों का संयोजन कैसे हो? सर्वप्रथम इतिहास ज्ञात करना आवश्यक था। अतः प्रारम्भ में इतिहास अनुसंधान का कार्य हाथ में लिया। इतिहास खोज के लिए हमारे पास कोई सटीक स्रोत नहीं थे। उपलब्ध स्रोतों से ही मुझे इतिहास के तार जोड़ने थे....
1. बहीवंचा मिल जाय तो समग्र इतिहास ज्ञात हो।
2. चली आ रही दंतकथाओं का विश्लेषण किया जाय।
3. पारंपरिक मान्यताओं से ऐतिहासिक संकेत लिए जाए।
4. ओसवाल इतिहास ग्रंथों में बोकड़िया गोत्र का इतिहास मिल जाए। और
5. शिलालेखों में कोई उल्लेख मिल जाय तो पुख्ता साक्ष्य मिले।
  • बंधुओं से पूछताछ के बाद बहीवंचा-गुरोंसा के अते पते का कोई सूत्र हाथ नहीं लग रहा था।
  • जनश्रुति के आधार पर मात्र इतना ही सूत्र था कि 'नख चौहान' है और 'बकरों को छुड़वाने से बोकड़िया कहलाए'
  • परंपराओं और मान्यताओं का विश्लेषण करने पर.......
1. सांचौर के बोकड़िया परिवारों में 'मंडोर के भेरूजी' की मान्यता थी।
2. प्रत्येक घर में भेरूजी/खेतलाजी का देवस्थान।
3. पुत्र के जन्मते ही दाएं कान में बाली पहनाने की प्रथा।
4. नीले वस्त्रों को धारण करने का निषेध
5. बजते घुंघरू के गहने, घंटी बजाना वर्जित।

इन परम्पराओं का विश्लेषण करते हुए निश्चित हो गया कि हमारा पूर्व वंश "चौहान" ही है इसमें अब कोई संदेह नहीं है। क्योंकि चौहान वंश में लोठदेव को पितृ माना गया है। आठ वर्षीय चौहान वंशज राजकुमार लोठ की हत्या उसके द्वारा पहने गए घुँघरू की ध्वनि के कारण हुई थी। पितृ 'लोठदेव' के वृतांत के आधार पर से चौहानों में बजते घुंघरू वर्जित है। अतः साफ है कि बोकड़ियों में यह प्रथा चौहान वंश से चली आ रही है। अतः 'नख चौहान' (नख अर्थात् शाख), हमारी गोत्र चौहान वंश की शाख है अर्थात बोकड़िया गोत्र चौहान क्षत्रिय राजवंश से निसृत है। घुंघरू निषेध इस यथार्थ को प्रमाणित करता है।
नीले वस्त्र खेतलाजी के परिधान होने से वर्जित है। काले भेरूजी कालभैरव (कृष्ण क्षेत्रपाल) चौहानों के भी कुलदेव है अतः स्वाभाविक है चौहानों से निकली हमारी गोत्र के भी कुलरक्षकदेव है।
जब यह सुनिश्चित हो गया कि पूर्व वंश चौहान है तो यह भी निश्चित हो गया कि हमारी कुलदेवी भी निश्चय से मां शाकम्भरी का स्वरूप माता श्री आशापुरा माँ ही है।
जन्म से आजन्म पहनी जाती बाली ने बकरे छुडाने के उत्पत्ति वृतांत पर तो जैसे मोहर लगा दी। बाली उस जीवदया की घटना का पारंपरिक चिन्ह है, बाली अभयदान का सांकेतिक प्रतीक है।
इस प्रकार बोकड़िया गोत्र के इतिहास खोज की इस यात्रा में अब तक उपलब्ध सूत्रों व साक्ष्यों से यह चार आधारभूत तथ्य स्थापित हुए.....
यथा...
1. इसमें कोई संशय नहीं कि जीवदया के महत्वपूर्ण कार्य, बकरों को छुड़वाने के अभयदान से प्रेरित, बोकड़िया उपमा एवं बोकड़िया गोत्र की स्थापना।
2. बोकड़िया गोत्र राजवंश क्षत्रिय "चौहान" वंश से निसृत।
3. कुलदेव मंडोर काला भेरुजी, कालभैरव (क्षेत्रपाल जी)
4. कुलदेवी मां आशापुरा

कथात्मक, श्रृंखलाबद्ध इतिहास अभी भी अनुपलब्ध था। बहीवंचों की खोज अभी तक सकारात्मक परिणाम नहीं दे रही थी। अब सारा दारोमदार ओसवाल जाति के प्रकाशित इतिहास पर ही निर्भर था।
ओसवाल जाति के इतिहास पर प्रकाशित अब तक के सारे साहित्य की सूची बनाई गई एवं इन दुर्लभ पुस्तको को दूर दराज के भिन्न भिन्न पुस्तकालयों जाकर, सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया........
ओसवाल इतिहास साहित्य
1. ओसवाल लोकां री आजकल री स्थिति - निमाणी (प्र. सं. 1947)
2. जैन सम्प्रदाय शिक्षा - यति श्रीपालचंद्र (प्र. सं. 1967)
3. महाजन वंश मुक्तावली - यति रामलाल जी (प्र. सं. 1967)
4. जैन क्षत्रिय इतिहास - रावत शेरसिंह (प्र. सं. 1970)
5. ओसवाल एवं उसके परिवार - उमरावसिंह टांक (प्र. सं. 1972)
6. श्री जैन गोत्र संग्रह - पं. हीरालाल हंसराज (प्र. सं. 1980)
7. ओसवाल जाति का इतिहास - श्री सुखसम्पतराय भंडारी (प्र. सं. 1982)
8. ओसवाल समाज की परिस्थिति और उसके उत्थान के उपाय - ओसवाल मित्र मंडल, मुम्बई (प्र. सं. 1982)
9. श्रीमाल जाति : एक परिचय - राजेन्द्र श्रीमाल (प्र. सं. 1985)
10. श्री जैन लेख संग्रह - श्री पूर्णचन्द्र जी नाहर (प्र. सं. 1985)
11. श्री जैन जाति महोदय - मुनि ज्ञानचंद्र जी (प्र. सं. 1986)
12. राजस्थान की जातियां - श्री बजरंगलाल लोहिया (प्र. सं. 2011)
13. ओसवाल : दर्शन दिग्दर्शन - श्रीमती मनमोहिनी (प्र. सं. 2032)
14. ओसवाल वंश अनुसंधान के आलोक में - श्री सोहनराज भंसाली (प्र. सं. 2039)
15. इतिहास की अमरबेल ओसवाल - श्री मांगीलाल भूतोड़िया (प्र. सं. 2045)

विभिन्न इतिहास ग्रंथों के अध्ययन एवं अनुशीलन के बीच, बोकड़िया बंधुओ के नाम पते संपर्कों का संग्रहण जारी था। इन संपर्कों के संग्रहण के लिए, लोगों से पूछताछ, पत्र पत्रिकाओं में छपने वाले नाम, विभिन्न जैन संघों की सूचियां, जैन पत्र पत्रिकाओं में आने वाले नाम पते, विभिन्न संस्थानों में लगी नामपट्टिकाएँ, शहरों की फोन डायरेक्टरियाँ आदि आदि, एक भी संपर्क मिलता तो उनसे, उनके गांव के सभी बोकड़िया परिवारों की सूची के लिए अनुरोध किया जाता। इसी क्रम में मेरा संपर्क खांगटा मूल के चेन्नई निवासी श्री इंदरचंद जी बोकड़िया से हुआ हुआ, वे चेन्नई के बहुत बोकड़िया बंधुओं के संपर्क में थे एवं मशहूर फिल्म निर्माता के सी बोकड़िया के चाचा है उन्होंने चेनई की एक डायरेक्ट्री छपवाई थी। उसी क्रम में मेरा संपर्क गोडवाड़ के बंधुओं से हुआ, श्री अमृत जी बरलोटा, सादड़ी मूल के श्री जयराज जी बलडोटा, प्रसिद्ध उद्योगपति श्री अभयराज जी बलडोटा, बड़गांव मूल के श्री जयंतीलाल जी बोकड़िया। इन बंधुओं से ही पहली बार ज्ञात हुआ कि बोकड़िया और बलदौटा एक ही गौत्र के दो नाम है। संभवतः बलदौटा और बोकड़िया एक ही गौत्रभाई है।

इतिहास ग्रंथों के अनुशीलन से जो ज्ञात हुआ....
"महाजन वंश मुक्तावली" में उपाध्याय रामलालजी ने ओसवालों के गौत्रों की एक सूची दी है उस सूची में बोकड़िया गोत्र का केवल नामोल्लेख मात्र मिला, इतिहास नहीं।
"जैन जाति महोदय" के लेखक मुनि ज्ञानसुन्दर जी भी ओसवालों की मूल 18 गोत्रों में बारहवीं गोत्र भूरि के अंतर्गत बोकड़िया गोत्र को सूचीबद्ध करते है विस्तृत जानकारी का इसमें भी अभाव है।
इसके बाद के प्रकाशित सभी ग्रन्थों में इन्ही दो ग्रंथों की मात्र सूची का अनुसरण दृष्टिगोचर होता है। इन सभी ग्रंथों में गच्छों की खींच तान स्पष्ट नजर आती है, उपकेश गच्छ वाले अपनी सूची में गौत्रनाम लिख देते है तो खरतरगच्छ वाले अपनी सूची में।
"ओसवाल जाति का इतिहास" जिसे सुखसम्पतराय भंडारी ने लिखा, इसमें 'बोकड़िया' तो नहीं, किन्तु 'बलदोटा' गौत्र का कथात्मक इतिहास आलेखित हुआ है। बोकड़िया नहीं तो बलदोटा गोत्र का इतिहास सही, छपा इतिहास अधिक विश्वसनीय होता है यह आलेख संदर्भ के लिए, साक्ष्य जुटाने के लिए अथवा नाम काल और घटनाएं मिलाने को तो काम लगेगा, यह सोचकर इसकी फ़ोटो प्रति संकलित कर ली गई।
इस आलेख में प्रतिबोध स्थल रामसीन, संवत 707, मूल पुरुष चाहड़देव, प्रतिबोधदाता प्रद्योतनसूरि का उल्लेख हुआ है आगे इस लेख में बलदौटाओं द्वारा "बलदौट" नामक गाँव बसाने का उल्लेख है, हमारे पूर्वजों द्वारा बसाए गए इस गांव को खोज निकालने की प्रबल इच्छा को दबाना कठिन हो गया।
इन ग्रंथों के अध्ययन से एक और जो विशिष्ट बात उभर कर सामने आई वह यह कि कभी "बोकड़िया गच्छ" भी प्रवृतमान था।
उक्त बलदोटा गोत्र के प्रकाशित इतिहास की पुष्टि के लिए उसमें उल्लेखित स्थलों की पहचान हो जाय तो, किंदन्ति को मजबूत साक्ष्य मिल सकता है। रामसीन क्योंकि हमारे ही क्षेत्र में पड़ता था, उसकी प्राचीनता असंदिग्ध है और गांव आज भी अस्तित्व में है। अतः खोज का सारा ध्यान "बलदौट" नामक गाँव खोजने में लगाया। उत्सुक था कि हमारे पूर्वजों का अपने ही गौत्र नाम से आबाद किया गया वह गाँव अब कहाँ है। विभिन्न प्राचीन उल्लेखों में इस गांव को खोजा गया पर सफलता हाथ न लगी। थक हार कर पूरे राजस्थान के नक्शो को पलटा गया किन्तु 'बलदोट' नामक कोई गांव भारत भर के नक्शे में भी नहीं था।
अंततः अंतिम प्रयास के तौर पर रामसीन नगर की 50 किलोमीटर की परिधि में आने वाले प्रत्येक गांव पर सूक्ष्म दृष्टि डाली गई। खोजते खोजते मेरी दृष्टि "बरलूट" नामक गाँव पर स्थिर हो गई। हृदय कह रहा था कि संभवतया यह 'बरलूट' ही 'बलदौट' का अपभ्रंश हो। यहां मुम्बई में बरलूट गांव के किसी जानकार सज्जन की खोज हुई, निकट भोईवाड़ा में बरलूट के सज्जन मिल गए। जब उनसे पूछा गया कि बरलूट का क्या इतिहास है तो उन्होंने बताया कि इतिहास तो मैं नहीं जानता, लेकिन हमारे गांव का प्राचीन नाम बलदौट है। मैं खुशी के मारे उछल पड़ा!! उन्होंने बताया कि बरलूट में एक प्राचीन शिलालेख मिला है जिसमें इसका प्राचीन नाम 'बलदउठ' लिखा है और यह शिलालेख, जीर्णोद्वार के समय, वर्तमान मंदिर के नीचे भी एक पुराना, ईंटों से बना मंदिर मिला और उस पर यह शिलालेख लगा हुआ था। बरलूट के सज्जन ने बताया कि इस शिलालेख का उल्लेख हमारी "झोरा जैन संघ" की डायरेक्ट्री में भी हुआ है। उन्होंने उस डायरेक्ट्री के उक्त पन्ने की फ़ोटोकॉपी मुझे दी। मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा था, त्वरित बरलूट जाकर उस शिलालेख को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। उस गांव में कदम रखकर स्वयं को सौभाग्यशाली मान रहा था। उस भूमि के दर्शनमात्र से ऊर्जा का संचार हुआ। नदी किनारे बसा बड़ा रमणीय कस्बा है। वर्तमान में पोरवालों की बस्ती है। लोग बड़े मिलनसार थे बरलूट के सरपंच एवं निवासियों का किसी अनजान व्यक्ति का ऐसा आदर सत्कार! मैं भूल नहीं सकता। मैने स्वयं उस प्राचीन भाषा में टंकित शिलालेख को पढ़ा.....
शिलालेख :
"ॐ सं 1283 महाराज उदयसिंहदेव कल्याण विजय राज्ये यशोवीर.......... उसवाल ज्ञातिय श्री वाकप्ररी गोत्रे........... पदमा जसध्वल धनदेव गुणपाल अरसिंह नरपाल दम्मसिंह तेजपाल पदमसिंहेन श्री वृहदगच्छीय....... श्री मनणसिंह श्रेयसे........ मनणसिंहविहार...... बलदउठ नगरे......... वादिदेवाचार्य संताने श्री धनेश्वरसूरि शिष्य गुण..... सिंहसूरिभिं:।।"
इस शिलालेख से स्पष्ट था, यह वही बलदोट नगर है जिसे हमारे पूर्वजों ने कभी बसाया था।
प्राचीन इतिहास साहित्य के अध्ययन के दौरान हमें एक गौरवशाली तथ्य का भी पता चला, बोकड़िया समुदाय के लिए कभी स्वतंत्र "बोकड़ियागच्छ" विद्यमान था। ऐसा अमूमन किसी गोत्र का गच्छ नहीं देखा गया। शिलालेख एवं प्रतिमा लेख के ग्रंथों का अध्ययन इस आशय से हो रहा था कि शिलालेखों के साक्ष्य से बोकड़िया गोत्र का इतिहास, गोत्र के विशिष्ट पुरुषों के बारे में जानकारी हासिल हो। उसी उपक्रम में बोकड़िया गच्छ का अस्तित्व सामने आया। उल्लेख देखने से हमें साधुओं के नाम, उनका काल एवं उत्तरोत्तर गच्छ के नाम परिवर्तन की जानकारी मिलती है। उक्त शिलालेखों को क्रमबद्ध करने से यह जानकारी हासिल हुई कि 'बोकड़िया गच्छ' वस्तुतः वड़गच्छ की शाखा था।
शिलालेख :
सं 1458 श्री धनदेवसूरि पट्टे धर्मदेवसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1496 श्री भट्टा. धर्मतिलकसूरि 'बोकड़िया गच्छे'
सं 1503 श्री भट्टा. धर्मचंद्रसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1511 श्री भट्टा. मलयचंद्रसूरि 'रामसेनिया गच्छे'
सं 1519 श्री धर्मचन्द्रसूरि पट्टे मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1525 श्री धर्मचन्द्रसूरि पट्टे मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1529 श्री मलयचंद्रसूरि 'गच्छे बोकड़िया'
सं 1529 श्री मलयचंद्रसूरि 'बोकड़िया'
सं 1530 श्री मलयचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1549 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि
सं 1553 श्री भट्टा. मुनिचन्द्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1559 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि 'वृहदगच्छे बोकड़िया वंटके'
सं 1562 श्री मलयचंद्रसूरि पट्टे मणीचंद्रसूरि  'बोकड़िया गच्छे'
सं 1587 श्री मलयहंससूरि 'वृहद बोकड़िया गच्छे'
सं 1617 श्री देवानंदसूरि 'बोकड़िया गच्छे'

इस प्रकार वृहदगच्छ (वडगच्छ) की शाखा रामसेनियागच्छ और रामसेनिया गच्छ से बोकड़ियागच्छ शाखा निकली। रामसीन से तो हमारा संबंध है ही साथ ही दो शिलालेख में तो "वृहदगच्छे बोकड़िया वंट" स्पष्ट उल्लेख है। अर्थात बोकड़िया गच्छ, वडगच्छ की शाखा है। यह स्पष्ट संकेत है कि हमारा मूल गच्छ, वड़गच्छ (वृहदगच्छ) है।

इतिहास खोज के इस क्रम में अर्वाचीन शोधप्रबंध ग्रंथों का अवलोकन भी किया गया। इसलिए कि कदाचित इन लेखकों ने कुछ इतिहास खोज निकाला हो.......
1. ओसवाल वंश इतिहास के आलोक में। - ले. सोहनराज भंसाली
2. इतिहास की अमरबेल ओसवाल - ले. मांगीलाल भूतोड़िया।
3. ओसवंश : उद्भव और विकास - ले. डॉ महावीरमल लोढ़ा
4. ओसवंश का इतिहास - ले. जैन चंचलमल लोढ़ा।

किन्तु ये नवीन शोधप्रबंध भी कोई विशेष सहायता नहीं कर पाए। इन सभी के लेखकों ने, बोकड़िया गोत्र पर तो कुछ नहीं लिखा वरन बलदौटा गोत्र पर भी पूर्व प्रकाशित, सुखसम्पतराय भंडारी लिखित "ओसवाल जाति का इतिहास" में आलेखित "बलदौटा" गोत्र के इतिहास लेख का आधार लेकर थोड़े से फेर बदल से प्रस्तुत कर दिया है। यह परिवर्तन कभी प्रतिबोधक आचार्य का काल मिलाने के लिए तो कभी उस काल के आचार्य को दर्शाने के लिए तो किसी में गच्छ आरूढ़ करने के लिए।
"ओसवंश का इतिहास" जिसे चंचलमल जी लोढ़ा लिख रहे थे, मैंने उन्हें बोकड़िया गोत्र की जानकारियां भेजी और उस समय तक इतिहास शोध के निष्कर्ष भेजे ताकि कहीं तो बोकड़िया गोत्र का उल्लेख आए। मैंने साक्ष्य के तौर पर, बोकड़िया गोत्र के दो शिलालेख भेजते हुए उन्हें जानकारी दी कि बलदौटा और बोकड़िया एक ही गोत्र है। कदाचित बोकड़िया गोत्र बलदौटा की शाख है। किन्तु पता नहीं क्यों लोढ़ा जी ने दोनो गौत्रों को एक मानने से इनकार कर दिया। साथ ही उन्होंने चौहान वंश से उत्पत्ति से भी इनकार कर दिया। मेरे द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की अवहेलना करते हुए भी मेरे द्वारा उपलब्ध करवाई गई जानकारी का उपयोग अपने हिसाब से किया। मेरे नाम का उल्लेख भी हंसराज बोकड़िया की जगह हेमराज बोकड़िया कर दिया।
जो भी हो, इतिहास पर उपलब्ध स्रोतों पर शोध हो चुकी थी। इससे जो तथ्य उभर कर आए, उसका निष्कर्ष इस प्रकार था -
1. जीवदया रूपी बकरों को छुड़वाने के कार्य से बोकड़िया गोत्र की स्थापना हुई, यह अनुश्रुति सभी जगह एक ही है। सांचौर के बोकड़िया परिवार में दाएं कान में बाली पहनने की प्रथा से, इस उत्पत्ति कथा का पुष्टिकरण होता है, क्योंकि बकरों को अभयदान देकर उनके कान में बाली पहनाने की परंपरा रही है।
2. चौहान राजकुल से निकले, अर्थात् नख चौहान : अनुश्रुति के साथ ही पाली जाती परंपराओं (विशेष कर बजते घुंघरू का निषेध), कुलदेव एवं कुलदेवी मान्यता से यह निश्चित है कि हमारा गौत्र "बोकड़िया" चौहान वंश से ही निसृत है।
3. कुलदेव कालभैरव (मण्डोर क्षेत्रपाल, काले खेतला जी) एवं कुलदेवी श्री आशापुरा माता (पूर्व शाकंभरी मां) पूर्व वंश चौहान कुल से ही अखण्ड परंपरा में है।
4. अनुश्रुति के आधार पर सुनिश्चित है कि "बोकड़िया" और "बलदोटा" एक ही गोत्र है, एक गोत्र के दो नाम है, अथवा भाई-भाई है या फिर एक ही गोत्र की दो शाखाएं है।
5. बलदौटा इतिहास में वर्णित बलदौट गांव की पहचान 'बरलूट' के रूप में सुनिश्चित। यह खोज बलदौट नगर बसाने की दंतकथा का सशक्त प्रमाणीकरण है।

संकलन संग्रहण :
इस शोधकार्य के मध्य,
1. बोकड़िया परिवारों के बसावट के कई गांव नगरों की एक सूची तैयार हो गई। सांचौर, मंडार, जसोल, गुड़ामालानी, लाखावास, रानीवाड़ा, जालोर, पादरू, सिवाना, सिणधरी, बालोतरा, नोखड़ा, शिवगंज,सुमेरपुर, बाड़मेर, आहोर, खांगटा, खारिया, थांवला, जेतारण, जाडन,मेड़ता, लाडनूँ, सुजानगढ़, सोजत, अजमेर, कुचेरा, पाली, जोधपुर,मारवाड़ जंक्शन, बागोल, हउवा, बिजोवा, सिंदरू, खुडाला, फालना, देसूरी,खारला, खिमेल, बड़गांव, सादड़ी, सांडेराव, घाणेराव, छोटी पादू, एरिनपुरा, अटवाडा, देलवाड़ा, चंदेसरा, चितौड़गढ़, उदयपुर, खेरोदा, मावली, नाथद्वारा, बीजनवास, अमरपुरा-खालसा,बगडून्दा, सिन्दू, छायन, बदनावर, इंदौर, रतलाम, भोपाल, उज्जैन,सुखेड़ा, कालूखेड़ा, नागदा, धार, पेटलावद, नीमच, पलसोड़ा, खजुराहो, तरपाल आदि । इस सूची को समृद्ध करने में अपने भ्राता फूलचंद जी छोगजी बोकड़िया के स्नेहपूर्ण सहयोग को कभी विस्मृत नहीं कर सकता।
2. विभिन्न स्रोतों से, 60- 70 के लगभग भिन्न भिन्न स्थलों के  बोकड़िया बंधुओं के संपर्क, नाम पते एकत्रित हो गए.....उसी दौरान मद्रास के श्री इंदरचंद जी ने "जसराज फैमिली गाईड" डायरेक्ट्री का प्रकाशन किया और एक प्रति मुझे भेजी। उनके श्रम से तमिलनाडु के 50-60 पते सहज ही जुड़ गए। सांचौर के 60-70 घरों से मेरा संपर्क था ही। इसतरह हमारे पास 180 के करीब संपर्क थे।
अब समय आ गया था जब सभी बोकड़िया बंधुओं से संपर्क किया जाय, संयोजन किया जाय एवं सम्मेलन का मार्ग प्रशस्त किया जाय।
बोकड़िया परिवारों की संयोजन यात्रा में सहयात्री का सहज संयोग!!
सांचौर से भ्राता पुखराज जी का फोन आया कि उदयपुर के श्री मदनलाल जी बोकड़िया का 'बोकड़िया समाज सांचौर' के नाम एक पत्र आया था। क्योंकि "बोकड़िया समाज" नामक कोई संघ सांचौर में नहीं था अतः पोस्टमैन ने वह पत्र मुझे (पुखराज जी को) थमाया। पत्र में मदनलाल जी ने बोकड़िया गोत्र का इतिहास एवं  बोकड़िया कुल संबंधी जानकारी की जिज्ञासा प्रकट की थी। पुखराज जी ने कहा कि मैंने मदन जी को प्रत्युत्तर देते हुए बताया है कि हमारे मुम्बई निवासी हंसराज जी बोकड़िया पिछले कई वर्षों से बोकड़िया गोत्र पर शोधकार्य कर रहे है। वे आपको बोकड़िया गोत्र संबंधी वांछित जानकारियां दे सकते है।
शीघ्र ही मुझे 29 अगस्त 2002 का लिखा मदनलाल जी का पत्र मिला, उन्होंने गौत्र संबंधी सूचनाएं जानने की इच्छा प्रकट की थी साथ ही अब तक कि शोध खोज के बारे में जानना चाहा एवं मेरे इस शोधकार्य में सम्मलित करने का अनुरोध किया।
मुझे जैसे मांगी मुराद मिल गई। अकेले चल रहा था, रुचि अवरोह पर थी। बड़ी कठिन राह थी ऐसे में सामने से चलकर हमराही मिल गया था।
मैंने त्वरित ही मेरे द्वारा किए गए शोध संशोधन की निष्कर्षों सहित पूरी सामग्री उन्हें भेज दी......
उस जानकारी के साथ मैंने मदन जी से अनुरोध किया कि आप वहां बहीवंचों की खोज करें, आपके राजस्थान में होते यह कार्य आपके लिए सरल होगा।

5 ऑक्टोबर 2002 का मदनजी का पत्र मिला। वे शोधकार्य सामग्री एवं निष्कर्षों से गदगद थे। इस भागीरथी प्रयत्न की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए महत्वपूर्ण जानकारी दी कि हमारे वहीवंशा अथवा गरोंसा, सिरियारी के पास स्थित जोजावर से आते थे और उन्होंने बही का उतारा कानोड़ कस्बे के ऊँकारजी गरों को सौंपा था। उन्होंने कानोड़ जाकर जानकारी प्राप्त की। कानोड़ में उन्हें ओंकारलाल जी के पुत्र भेरूलाल जी मिले, उनके पास उतारा भी था। किन्तु बिना शुल्क वे प्रतिलिपि करवाने के लिए तैयार नहीं थे। दूसरा, भाषा व लिपि पुरानी थी अतः किसी पुरानी लिपि के जानकार की सशुल्क सेवा लेना भी आवश्यक था। मदनजी ने अर्थाभाव की विवशता जाहिर की। अन्ततः मेरे एवं कुछ मदनजी के अर्थसहयोग से हम वंशावली की प्रतिलिपि प्राप्त करने में सफल हुए।
16, दिसम्बर 2002 को श्री मदन जी ने यह शुभ सूचना दी कि वंशावली की प्रतिलिपि प्राप्त कर ली गई है और उसकी एक प्रतिलिपि, मैं आपको भेज रहा हूँ.....!!  मेरी प्रसन्नता की सीमा न रही। पढ़ते ही मैं आवाक रह गया, मैनें अपनी शोध से जो निष्कर्ष निकाले थे, वे वंशावली के इस प्रथम पृष्ठ में हूबहू वर्णित थे। मेरे संशोधन एवं निष्कर्ष से पाए तथ्यों का पुष्टिकरण, यह वंशावली कर रही थी।
1. उत्पत्ति स्थल "रामसीन"
2. चौहान राजवंश से गौत्रोत्पत्ति
3. गौत्रोत्पति संवत 707
4. बोकड़िया और बलदोटा एक ही गोत्र
5. बलदौट नगर की स्थापना
6. जीवदया के प्रयोजन से बकरे छुड़वाने के महत्त कार्य से बोकड़िया उपमा एवं गौत्र उत्पत्ति
7. कुलदेव मंडोर के खेतलाजी एवं सोनाणा खेतलाजी भी।
8.कुलदेवी माँ आशापुरा, नाड़ोल (वंशावली में शब्द 'आसापतां' या 'आसापलां') चौहानों की प्रथम कुलदेवी मां शाकंभरी, आसोपाल्लव वृक्ष में से प्रकट होने के कारण एक नाम 'आसापलां' भी संभव है।
इस पुष्टिकरण के साथ कुछ नए तथ्य जो प्रकाश में आए......
1. प्रथम प्रतिबोध पाने वाले चौहान राजा का नाम "सावंतसिंह" था।
2. प्रतिबोधक आचार्य के नाम में भ्रम है।
3. प्रथम प्रतिबोध भी शिकार छोड़ने रूप "जीवदया" स्वीकार करने से हुआ।
4. बलदेव समान बलशाली होने के कारण, रामसीन में 'बलदौटा' उपमा मिली जो आगे चलकर गौत्र बन गई।
5. गच्छ, वडगच्छ ही था। वंशावली वडगच्छ के महात्मा रखते थे
6. बोकड़िया बनने की घटना मण्डोर में हुई।

बोकड़िया परिवार की प्राप्त वंशावली की भाषा और लिपि पुरानी मारवाड़ी थी। उसमें कई शब्द समझने बड़े कठिन थे। मैंने और मदनजी ने निरंतर पत्रव्यवहार के माध्यम से वंशावली का संशोधन और सम्पादन किया, तब जाकर वंशावली सुपाठ्य हुई। इसी के साथ इतिहास शोध पूर्ण हो गई थी अब केवल परिवारों की खोज, संकलन, संग्रहण और संयोजन पर ध्यान केंद्रित करना था।
उसी क्रम में स्थानीय आधार पर स्नेह मिलन के प्रयोग किए जाने थे। मैंने सांचौर नगर के समस्त परिवारों के स्नेहमिलन के प्रयास किए, किन्तु किसी कारण वश उसमें हमें सफलता हाथ न लगी। फिर भी निराश नहीं हुए, एक समूह विशेष तक सीमित रखकर फिर प्रयास किया गया, वह सफल रहा। यह मिलन संग नाड़ोल माताजी ओसियाजी जैन तीर्थ आदि यात्रा प्रवास था। उसकी सफलता पर अगस्त 2004 में, मेरे द्वारा खेमाजी बोकड़िया परिवार की पुस्तिका प्रकाशित की गई। उसी पुस्तिका में सर्वप्रथम बोकड़िया गोत्र का हमारे द्वारा संपादित इतिहास प्रकाशित किया गया। इस पुस्तिका में इतिहास के साथ साथ, सांचौर की कुल परम्पराएं, खेमाजी का वंशवृक्ष एवं संपर्क निर्देशिका प्रकाशित की गई जिसे सांचौर ही नहीं, अन्यत्र गांवों के बंधुओं ने बहुत सराहा। इतिहास का यह प्रथम प्रकाशन था। लोगों में कुल के इतिहास एवं संयोजन सम्मेलन के प्रति तीव्रतर रुचि जाग्रत हुई......
"दो बहुसंख्यक बड़े नगरों के बंधुओं का अभूतपूर्व मिलन"
ऑक्टोबर 2012, मंडार नगर में कुलदेव खेतलाजी के स्थान की जीर्णोद्धार के बाद प्रतिष्ठा थी। मंडार के बोकड़िया बंधुओं ने निर्णय लिया कि अन्यत्र गांव के बोकड़िया बंधुओं को प्रतिष्ठा के अवसर पर आमंत्रित किया जाय ताकि अन्यत्र बसे बोकड़िया बंधुओं से निकटता बढ़े।
आमंत्रण के लिए मंडार का एक प्रतिनिधि मंडल सांचौर आया एवं श्री पुखराज जी को मिला। पुखराज जी ने कहा कि हमारे भाई अधिकांश मुम्बई में रहते है, पत्रिका वहाँ देनी चाहिए... साथ ही कहा हमारे हंसराज जी वहां है और उनका यह पता है।
मुम्बई से मंडारवासी श्री दिनेश जी का फोन मुझे आया कि मंडार में खेतलाजी की प्रतिष्ठा है एवं सांचौर के भाइयों को आमंत्रित करने के लिए पत्रिका देनी है।.....
मैनें सोचा, जब सभी भाइयों को आमंत्रण देना है तो पत्रिका मैं अकेले कैसे ग्रहण कर सकता हूँ। मैंने निवेदन किया कि धर्मस्थान में मैं सभी भाइयों को इक्कठा करता हूँ, आप वहां पधारें एवं आमंत्रण दें...
विधिपूर्वक आमंत्रण स्वीकार कर सांचौर के 10-15 बन्धु मंडार के क्षेत्रपाल प्रतिष्ठा उत्सव में सम्मलित हुए। यह दो गांवों का अभूतपूर्व मिलन था। लोगों में मिलन का उत्साह था। शताब्दियों के बिछड़े वंशज मिल रहे थे। यहाँ मेरा संपर्क भरत भाई बोकड़िया से हुआ। सभी के मन में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन की उमंग हिलोरें लेने लगी। इधर मदन जी बोकड़िया ने भी अपने प्रयास तेज कर दिए। मैंने कहा जो भी हो इस संयोजन को सम्मेलन की दिशा देकर, ध्येय सिद्ध करना है। संभावित गांवों की सूची से पत्र द्वारा संपर्क प्रारम्भ किए गए, पूर्वसंकलित पतों पर पत्र लिखकर अपने अपने गांव की सूची प्राप्त करने के प्रयास हुए। मदन जी तो यत्र तत्र पत्रिका में बोकड़िया भाई का नाम देखते तो त्वरित संपर्क करते। इसी प्रयास में मदन जी का संपर्क अमरावती के ताराचंद जी से हुआ, उन्होंने और उनके पुत्र सुशीलजी ने बहुत रुचि दिखाई। इसी तरह मदनजी का संपर्क बदनावर म्.प्र.के मोहनलाल जी एवं उनके पुत्र मनीष जी से हुआ। इन्होंने डायरेक्ट्री छपवाने में रुचि दर्शायी इस तरह बदनावर के परिवारों एवं अमरावती के परिवारों के सहयोग से प्रथम अखिलभारतीय डायरेक्ट्री प्रकाश में आई। मदनजी ने परिश्रम पूर्वक उपलब्ध संपर्कों के आधार पर, अप्रेल 2014 में "अखिल भारतीय बोकड़िया परिवार संघ" के तत्वाधान में प्रथम संस्करण बोकड़िया समाज को अर्पित किया......
समग्र संयोजन अभी प्रगति पर था, किन्तु लोगों में उत्साह जगाना भी आवश्यक था इसीलिए शीघ्रता से यह प्रकाशन अनिवार्य था। अतः जल्द ही दूसरे संस्करण की योजना बनाई गई....

यद्यपि प्रथम डायरेक्ट्री परिपूर्ण तो नहीं थी, तथापि यह डायरेक्ट्री बंधुओं में मिलन सम्मेलन की तीव्र रुचि जाग्रत करने में सफल सिद्ध हुई। मदन जी के पास द्वितीय संस्करण हेतू प्रस्ताव आने लगे। ज्यादा से ज्यादा भाइयों के समावेश हेतू दबाव बढ़ने लगा। मदन जी ने कई जगह पत्र लिखे किन्तु रिस्पॉन्स नहीं आ रहे थे। मदनजी ने मुझसे सम्पर्क किया एवं छूटे गांवों के संपर्क एवं दूसरे संपर्क त्वरित संग्रहण की योजना बनाने का आग्रह किया।
मैंने त्वरित नए नए आए इन्टरनेट के माध्यम वाट्सएप का उपयोग करने का निर्णय लिया।
शीघ्र ही दिनांक 03/07/2015 को "अखिलभारतीय बोकाड़िया समूह" नामक ग्रुप की रचना की एवं अलग अलग गांव नगरों के दो दो चार चार पूर्वपरिचित बंधुओं को जोड़ दिया, साथ फेसबुक आदि माध्यमों से संपर्क करके नए नए गांवों के लोगों को इस ग्रुप में जोड़ा। साथ ही उन सभी से अनुरोध किया गया कि वे अपनी जान पहचान के बोकड़िया बंधुओं को जुड़वाएं। देखते देखते पहले पचास और फिर 100 प्रतिनिधि ग्रुप में जुड़ गए। सभी से ग्रुप में अपील एवं फोन द्वारा विनंती की गई कि वे सभी अपने अपने गांव नगर शहर के बोकड़िया परिवारों के नाम-पते-संपर्क शीघ्र ही मदन जी के पते पर या ईमेल पर भेजने का कष्ट करें, डायरेक्ट्री की नई आवृति निकलने जा रही है। मेरे इस प्रयास से सांचौर, मंडार, रानीवाड़ा, लाखावास, गुड़ामालानी, भीनमाल, जालोर, जसोल, पादरू-सिवाना आदि मारवाड़ क्षेत्र से पहली बार एक साथ संपर्क प्राप्त हो गए। सांचौर से मफलताल जी ने, मंडार से प्रीतम जी ने, रानीवाड़ा से नेमीचंद जी ने, लाखावास से महेंद्र जी ने, गुड़ामालानी से कांतिलाल जी ने, भीनमाल से अरविंद जी ने, जालोर से गजेन्द्र जी ने, जसोल से भंवरलाल जी एवं दीपचंद जी ने, पादरू-सिवाना से पिंटू जी ने जोरदार परिश्रम कर सभी के नाम पते संपर्क जुटा कर भिजवाए। उस समय तक 600 के लगभग परिवारों का संयोजन हो चुका था। गांव गांव के नाम पतों की संकलन क्रिया में 40 के लगभग क्षेत्र प्रतिनिधि बन चुके थे।
लोगों में सजगता आई और वे बढ़चढ़ कर रुचि लेने लगे। समूह ग्रुप में ही लोगों की प्रतिक्रिया जानने हेतु सम्मेलन की संभावना का विचार रखा गया। लोगों ने उत्साह से इस विचार को हाथों हाथ लिया। सभी  लोग एक मत से अखिलभारतीय बोकड़िया परिवार का सम्मेलन आयोजित करने का निर्धारित कर चुके थे। प्रारम्भ से लेकर अनवरत योगदान देने वाले बन्धु ग्रुप में जुड़ चुके थे। स्थानीय स्तर पर छोटे छोटे समूहों ने स्नेह मिलन कर अखिल भारतीय सम्मेलन की पूर्वभूमिका बना दी थी। सभी की भावना थी कि महाअधिवेशन आयोजित हो। आयोजन के लिए सर्वप्रथम आयोजन कार्यकर्ताओं की टीम बनाना अतिआवश्यक था। "अखिलभारतीय बोकाड़िया परिवार" समूह से प्रतिनिधियों की एक सभा आयोजित करने का निर्णय हुआ। यह सभा कब और कहां हो इस पर ग्रुप में चर्चा हुई। स्थल कोई ऐसा हो जो मध्य एवं सभी के पहुँचने में अनुकूल हो। दूसरी तरफ पवन जी बरोडा में गुजरात के बोकड़िया बंधुओं के स्नेहमिलन की कोशिश रहे थे। किंतु कोई भी बंधु प्रतिभाव नहीं दे रहा था। गुजरात सम्मेलन हेतू सहमति के अभाव में गुजरात सम्मेलन की योजना निरस्त थी। इस तरफ अखिल भारतीय के प्रतिनिधिमंडल की सभा के लिए केंद्रीय स्थान की आवश्यकता थी। पवन जी से पूछा गया कि क्या बरोडा भाइयों का संघ अखिलभारतीय के प्रतिनिधिमंडल को सभा के लिए बुलाना चाहेगा? पवन जी ने कहा हम तैयार है। बस फिर क्या था, अखिलभारतीय के प्रतिनिधियों की सभा का स्थल बरोडा निश्चित किया गया।अर्थात् अब तक 600 के लगभग परिवारों का संयोजन। 40 के करीब क्षेत्र प्रतिनिधि, 5 प्रारंभिक सक्रिय बन्धु, 40 के करीब नए वाट्सएप से जुड़े बंधुओं में ग्राम नगर क्षेत्र वाइज एवं रुचिवान बंधुओं से एक 'प्रतिनिधि मंडल' तैयार किया गया, जिन्होंने सहर्ष अपना नामांकन 'बरोडा समिट' के लिए करवाया।
बरोडा प्रतिनिधि सभा का प्रकाशित वेन्यू एवं एजेंडा --
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अखिल भारतीय बोकड़िया गौत्र के प्रतिनिधि मंडल की सभा :-
स्थल : बरोड़ा
दिनांक : 06. 03. 2016, रविवार।
समय : प्रातः 9 से 12 आवश्यकता रही तो दोपहर 2 से 5.
इस प्रतिनिधि सभा का एजेंडा......
1. परिचय आदान प्रदान
2. अ.भा.डायरेक्ट्री की प्रकाशन व्यवस्था।
3. अ.भा. स्तर पर सम्मलेन का खाका बनाने के लिए आधारभूमि तैयार करना।
-हंसराज बोकड़िया
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1. इस प्रतिनिधि सभा में सभी बंधुओं ने परिचय का आदान प्रदान किया।
2. डायरेक्ट्री के प्रकाशन का लाभ सांचौर निवासी बाबूलाल जी हस्तीमल जी बोकड़िया ने लिया।
3. एवं सर्वसम्मति से प्रथम अखिल भारतीय बोकड़िया महाअधिवेशन आयोजित करने का निर्णय लिया। सम्मेलन आयोजन के हेतु, कार्यकर्ताओं की एक 21 सदस्यों की "सम्मेलन आयोजन समिति' की रचना की, जिसे अधिकार दिया कि समिति ही, समय स्थान का निर्णय करेगी एवं सम्मेलन आयोजन के समस्त कार्य-सेवाओं का निर्वाहन करेगी।
सदस्यों से संपर्क हेतु क्षेत्र कार्यकर्ताओं में, उपस्थित बंधुओं से क्षेत्र कार्यकर्ता विस्तार किया।
यद्यपि संयोजन अभी भी अपूर्ण था, बहुत से बंधुओं, क्षेत्रों एवं गांवों से संपर्क कर, उन्हें जोड़ना अभी बाकी था किंतु फिर भी सभी के अतिउत्साह को देखते हुए अन्ततः एक सम्मेलन आहूत करने का निर्धारित हुआ।
ऐसे ही सभी गांवों को जोड़ने का कार्य, परिचय, मेल मिलाप और सामंजस्य स्थापित होने में अभी समय देना अनिवार्य था, संगठन अभी अपरिपक्व अवस्था में था। तथापि लोगों का उत्साह बनाए रखने के लिए एवं भातृत्व मिलन के प्रति रुचि को अनवरत रखने के तात्कालिक उद्देश्य से एक महासम्मेलन तो आवश्यक था। क्योंकि ऐसे स्नेह मिलन से ही परिचय और निकटताएँ बढ़ेगी और संघ सुदृढ़ होगा। मेरी भी तमन्ना थी कि संयोजन का यह कार्य अब शीघ्रता से अपने चरम उद्देश्य पर पहुँचे। किन्तु यह भी जरूरी था कि जल्दबाजी में ऐसे निर्णय न हो कि संगठन अपने उद्देश्यों को पाने में विफल हो जाय, कोई ऐसी बात न आए जिससे दूरगामी परिणाम विपरीत हो। विकसित होते संगठन को दिशाभ्रम से बचाए रखना आवश्यक था इसीलिए संगठन को सावधानी से एक गाइडलाइन की मर्यादा में प्रेरित करना अतिआवश्यक था।
क्योंकि आयोजन समिति सदस्य सभी अलग अलग नगरों शहरों से थे अतः समिति का अपने विचार विनिमय एवं चर्चा के उद्देश्य से, दिनांक 07-03-2016 को बरोडा में बनी 21 सदस्यी सम्मेलन आयोजन समिति का "बोकड़िया महाअधिवेशन समिति" नाम से वाट्सएप ग्रुप बनाया गया। प्रथम अधिवेशन में ग्रुप चर्चाएं हुई। और मुम्बई में समिति की मीटिंग कॉल की गई।
मीटिंग में निर्धारित हुआ कि पहला सम्मेलन समस्त संघ ही अपने स्वयं के खर्चे से आयोजित करे अतः सम्मेलन स्थल पर अपनी मनमर्जी अनुदान लिया जाए। एवं समिति के सभी सदस्य अपनी ओर से 11हजार का अनुदान करे ताकि प्रारंभिक व्यवस्थाएं सम्पन्न की जा सके। पहला सम्मेलन माताजी के सान्निध्य में रखा जाए एवं दिसम्बर 16, 17 अनुकूल और उचित समय होगा।
नाड़ोल व्यवस्थाएं देखने, सर्वेक्षण करने एवं व्यवस्थाओं का निर्णय के लिए समिति का प्रतिनिधि मंडल नाड़ोल गया किन्तु वरकाणा की धर्मशाला सबसे उत्तम प्रतीत हुई, वहां के ट्रस्टि हमारे बन्धु खुड़ाला निवासी श्री शान्तिलाल जी बोकड़िया थे, उनसे बात करने पर उन्होंने जगह और वहां की सारी व्यवस्थाएं फिक्स कर दी एवं बाद में स्वयं वहां जाकर समुचित व्यवस्था का निर्देश दे आए। सर्वे टीम पाली गई एवं वहां कैटरर भी बलडौटा बन्धु थे, भोजन व्यवस्था उन्हें दी गई एवं मेन्यू भी निर्धारित कर दिया। भोजन व्यव्यस्था की देखरेख का जिम्मा पाली निवासी राजेश जी एवं महावीरजी ने ले लिया। यातायात एवं आवास व्यव्यस्था का जिम्मा दिल्लीवासी विक्रम जी एवं बरोडावासी पवन जी को सौंपा गया। सभा व्यव्यस्था का जिम्मा मैंने उठाया। अर्थव्यवस्था एवं हिसाबकिताब का जिम्मा दिनेशभाई मंडार वासी ने वहन किया। आमंत्रण पत्र बनाने और भेजने का उत्तरदायित्व, साथ ही पत्र पत्रिकाओं में प्रेसनोट देने का दायित्व मंडार निवासी भरतभाई ने बखूबी निभाया। सभा का एजेंडा जवाहरलाल जी के साथ बैठ कर तय किया गया। इस तरह सभी कार्यकर्ताओं ने तन मन से सेवा देकर प्रथम सम्मेलन की सफलता पूर्वनिश्चित कर दी। सभा अपने निर्धारित उद्देश्यों में अनुशासित रहे इसलिए समिति ने सभा संचालन की जिम्मेदारी मुझे सौपी।
अंततः संयोजन और सम्मेलन का हमारा लक्ष्य सिद्ध हुआ। बोकड़िया गोत्र का प्रथम अखिलभारतीय महाअधिवेशन दिसंबर 16, 2016 को नाडोल समीप वरकाणा में आहूत हुआ एवम प्रथम सम्मेलन ही अभूतपूर्व सफल हुआ।

बुधवार, 8 नवंबर 2017

बलदौटा गौत्र का प्रकाशित इतिहास

बलदौटा गोत्र का इतिहास।
ओसवाल जाति का इतिहास : लेखक श्री सुखसम्पतराय भंडारी 

बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

मूलगच्छ "वृहदगच्छ" (वड़गच्छ)
प्रतिबोधक गच्छ : वड़गच्छ