बोकड़िया बलदौटा गौत्र का पूर्ववंश (नख) "चौहान" ही है।
परम्परा से "बोकड़िया-बलदोटा नख चौहान" गौत्रोचार बोला जाता था। लेकिन इतिहास के अभाव में यह निश्चित करना कठिन था कि यथार्थ में जैन धर्म स्वीकार करके बोकड़िया गोत्र बनने से पूर्व हमारी जाति क्या थी?
कर्नल जेम्स टॉड ने चौहानो के इतिहास में एक घटना का वर्णन किया है। 684 ई में चौहान राजा दुर्लभदेव के समय फकिर रोशन अली की प्रेरणा से खलिफा वली अब्दुल मलिक ने, सौदागरों के भेस में अजमेर पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण बड़ा भीषण था।दुर्लभराज का युद्ध क्षेत्र में ही वध कर दिया गया। परिवार के सभी सदस्य काम आए। दुर्लभराज का आठ वर्षीय पुत्र राजकुमार लोठदेव छत से धनुष बाणों से सामना कर रहा था, उसके पैरों में घुंघरू के तोडे पहने हुए थे। घुंघरू की आवाज से शत्रुओं को राजकुमार लोठदेव की दिशा का मालूम हुआ और एक तीर से राजकुमार लोठ का भी वध कर दिया। चौहानवंशज लोटदेव को पितृदेव मानते है, एवं उस करूण व दुखद स्मृति में बजते घुंघरूओं के गहने आदि नहीं पहनते है।