
शाकम्भरी माता का आसोपालव वृक्ष से प्रकटन के फल स्वरूप उन्हे "आसोपला" भी कहा जाता था। हमारी वंशावली में भी "गोत्रजा आसोपला" नाम का उल्लेख हुआ है। अजमेर चौहान काल के सिक्के पर "आशावरी" नाम अंकित है।
एक मान्यता यह भी है कि जब राव लाखणसिंह ने नाडोल राज्य की स्थापना की तो अपनी कुलदेवी मां शाकम्भरी से प्रार्थना की। राव लाखणसिंह की आशा पूरी हुई अतः मां आशापुरा नाम से प्रसिद्ध हुई। राव लाखनसिंह ने नाड़ोल नगर की सीम में मां आशापुरा की स्थापना की। आज भी मां आशापुरा का प्रमुख पाट गादी, नाड़ोल में माना जाता है।
क्योंकि बोकड़िया गोत्र भी चौहान वंश से निसृत है अतः हमारी मूल कुलदेवी माँ आशापुरा है, और मुख्य स्थान नाड़ोल में है।
टिप्पणी :
{वैसे तो शक्तिपूजक सभी क्षत्रियों की कुलदेवी महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा ही है। नामान्तर से सभी माताएं मां दुर्गा के ही प्रतिरूप है। बस कुटुम्ब परम्परा से किसी विशेष माता को कुलदेवी मानने की प्रथा रही है। हमारे परिवार में भी कई लोग "सच्चियाय माता" तो कई लोग अम्बा माता को मानते है ऐसा ज्ञात हुआ। वस्तुतः इस मान्यता से कि सच्चियाय माता समस्त ओसवालों की माता है अतः हमारी भी वही होगी। जबकि सच्चियाय माता चामुन्डा का स्वरुप है एवं ये परमार नख वाली गोत्रों की माता है। }
लेख : हंसराज बोकड़िया