शनिवार, 5 सितंबर 2015

बोकड़िया गौत्र की गौत्रजा (कुलदेवी) निर्णय




यह निर्विवाद है कि क्षेत्रपाल (कुलदेव) व गोत्रजा (कुलमाता) पूर्ववंश के ही आराध्य होते है। और यह विदित ही है कि हमारा पूर्ववंश क्षत्रीय चौहान वंश था, चौहान वंश में परम्परा से आशापुरा मां कुलदेवी है। वस्तुतः सांभर राज्य स्थापना के समय ही कहते है मां शाकम्भरी ( शाक आदि वनस्पति की देवी) आसोपालव वृक्ष से प्रकट हुई थी। मां शाकम्भरी ने ही चौहानों को सांभर पर राज्य का आशिर्वाद दिया था।

शाकम्भरी माता का आसोपालव वृक्ष से प्रकटन के फल स्वरूप उन्हे "आसोपला" भी कहा जाता था। हमारी वंशावली में भी "गोत्रजा आसोपला" नाम का उल्लेख हुआ है। अजमेर चौहान काल के सिक्के पर "आशावरी" नाम अंकित है।
एक मान्यता यह भी है कि जब राव लाखणसिंह ने नाडोल राज्य की स्थापना की तो अपनी कुलदेवी मां शाकम्भरी से प्रार्थना की। राव लाखणसिंह की आशा पूरी हुई अतः मां आशापुरा नाम से प्रसिद्ध हुई। राव लाखनसिंह ने नाड़ोल नगर की सीम में मां आशापुरा की स्थापना की। आज भी मां आशापुरा का प्रमुख पाट गादी, नाड़ोल में माना जाता है।

क्योंकि बोकड़िया गोत्र भी चौहान वंश से निसृत है अतः हमारी मूल कुलदेवी माँ आशापुरा है, और मुख्य स्थान नाड़ोल में है।
टिप्पणी : 
{वैसे तो शक्तिपूजक सभी क्षत्रियों की कुलदेवी महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा ही है। नामान्तर से सभी माताएं मां दुर्गा के ही प्रतिरूप है। बस कुटुम्ब परम्परा से किसी विशेष माता को कुलदेवी मानने की प्रथा रही है। हमारे परिवार में भी कई लोग "सच्चियाय माता" तो कई लोग अम्बा माता को मानते है ऐसा ज्ञात हुआ। वस्तुतः इस मान्यता से कि सच्चियाय माता समस्त ओसवालों की माता है अतः हमारी भी वही होगी। जबकि सच्चियाय माता चामुन्डा का स्वरुप है एवं ये परमार नख वाली गोत्रों की माता है। }
लेख : हंसराज बोकड़िया

बोकड़िया गोत्र के प्रथम प्रतिबोधित मूलपुरुष



चौहान राजवंश में सामंतसिंह का होना निर्विवाद है।  चौहानो के वंशानुक्रम में, बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सामंतसिंह का नाम प्रथम है। पृथ्वीराज विजय में तीसरे स्थान, प्रबंधकोष के अनुसार दूसरे, हमीर महाकाव्य के अनुसार सातवे, सुर्जन चरित्र में पांचवे स्थान पर एवं राजपूताना गजेटियर  में तीसरी पीढी के स्थान पर है।

बिजोलिया लेख के अनुसार सपादलक्ष के चाहमानों का आदिपुरुष वासुदेव था। वह सांभर झील का प्रवर्तक था। इसका समय 551 ई (संवत् 608) के लगभग अनुमानित किया जाता है इसी के वंश में सामन्त शासक हुआ।

चौहानों का राज प्रदेश क्या था एक मत नहीं है वासुदेव का मुख्य प्रदेश सांभर था तो उन्हें जांगलेश भी कहा जाता है यह प्रदेश बिकानेर सहीत उतरी राजस्थान था, रण्थम्बोर को भी उनका मुख्य राजथान माना जाता है तो सिकर शेखावटी को भी, अजमेर तो उनका मुख्यालय रहा ही है किन्तु पूढाला, आबू, सिरोही पर भी उनका अधिपत्य रहा है। माना जाता है उनका शासन शेखावटी से सिन्ध पर्यन्त था। ऐसे में कभी रामसीन भी उनका राजथान रहा हो तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है।

हमारी पहली वंशावली में  "श्री गण्र्शाय नमः॥ बोकड़िया गौत्र बलदोटा गौत्रे, पूर्ववंश चवांणवंशी राजपूत महाराज श्री पृथ्वीपाल रे पाट वासदेव, वासदेव रे पाट सोमदेव, सोमदेव रे पाट सामंतसिंह………"

दूसरी वंशावली में प्रतिबोधक के रूप में सोमदेव या सोमदेवधन नाम आता है।
सोमदेव या सामन्तसिंह के बाद दो पुत्रों के नाम है यथा श्रीपाल एवं चाहड़देव्। दोनो वंशावलियों में यह दोनो नाम समान है।

सम्भव है सोमदेव व सामंतसिंह एक ही व्यक्ति के नाम हो, भिन्नता के कारण अलग अलग समझ लिया गया हो। बिजोलिया लेख में सामन्तसिंह के बाद नृप व जयराज के नाम आते है। सम्भव है सामन्तसिंह के 4 से अधिक पुत्र रहे हो, शासन की धूरी नृप (पूढ़ाला) एवं जयराज ने सम्हाली हो, श्रीपाल एवं चाहड़देव पूरी तरह जैनधर्मानुरागी बने हो, राजवंशों के वंशावलीकार प्रायः जैन बन जाने वाले वंशजों को गौण कर देते है उसका उल्लेख नहीं करते।

इसलिए यह अधिक सम्भव है कि हमारे गौत्र के मूल पुरुष यही चौहान श्रेष्ठ सामन्तसिंह है। इसी कालान्तर में राजधानी के रूप में रामसीन का पतन हुआ हो, नृप ने पूढ़ाला को राजथान बनाया हो, इधर श्रीपाल व चाहड़देव के वंशजो ने बलदोट बसाया हो।